पाणिनी
भारत के जीवन दर्शन को समझने में संस्कृत साहित्य की जो अहमियत है उतनी ही जरुरत संस्कृत भाषा को जानने में पाणिनी रचित संस्कृत व्याकरण ग्रंथ अष्टाधायी को पढ़ने की है। संस्कृत व्याकरण के इसी महान ग्रंथ से आम जन को रुबरु कराने के लिए मध्यप्रदेश के सागर स्थित ईएमआरसी केन्द्र में एक टेलीविजन कार्यक्रम तैयार किया जा रहा है जो जल्द ही दूरदर्शन के व्यास चैनल पर दिखाया जाएगा।
केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय के तहत ईएमआरसी यानी शैक्षणिक मीडिया शोध केन्द्र में व्याकरणाचार्य पाणिनी द्वारा लगभग ढाई हजार साल पहले रचित ग्रंथ अष्टाधायी पर बन रही फिल्म मूलत: छत्तीसगढ के बिलासपुर शासकीय महाविद्यालय की सेवानिवृत प्रोफेसर पुष्पा दीक्षित के व्याख्यानों पर आधारित है।
अष्टाधायी के भारत में मौजूद गिने चुने ज्ञाताओं में शामिल पुष्पा दीक्षित ने भाषा को बताया कि संस्कृत भाषा की बारीकियों व खूबियों से भारतीय ही नही विदेशी भी परिचित हो चुके है। उन्होंने कहा कि कुछ साल पहले ही एक अमेरिकी शोध संस्थान ने संस्कृत भाषा को कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के लिहाज से काफी उपयोगी बताया था। इसके अलावा भारत के वैदिक साहित्य व विद्याओं जैसे आयुर्वेद, अर्थशास्त्र ज्योतिशास्त्र आदि को जानने की ललक के चलते अब तक दुनिया की लगभग सभी मुख्य भाषाओं में संस्कृत भाषा के व्याकरण का अनुवाद हो चुका है।
अपने ही देश में संस्कृत भाषा को सीखने के प्रति लोगों की घटती रुचि पर अफसोस जताते हुए प्रो. दीक्षित कहती है कि इसके लिए सरकारें तो जिम्मेदार हैं ही साथ वो लोग भी जिम्मेदार है जो दुनिया भर में देवभाषा के रूप में मशहूर संस्कृत भाषा को अनुपयोगी व कठिन बता रहे हैं जबकि संस्कृत पाठ्यक्रमों में वाजिब महत्व व संस्कारों द्वारा पर्याप्त प्रश्रय नहीं मिलने व सही तकनीक से नही पढ़ाए जाने की वजह से संस्कृत लोगों से दूर होती लग रही है।
देश में संस्कृत के प्रचार के लिए प्रो.दीक्षित के समर्पण का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे पिछले करीब एक दशक से बिलासपुर में प्राचीन गुरुकुल प्रणाली की तर्ज पर पाणिनी पाठ्शाला चला रही है। जहाँ पाणिनी व्याकरण सीखने देश भर से शिक्षक व छात्र आते है। इस पाठ्शाला में विद्यार्थियों के लिए शिक्षा ही नही रहने व भोजन की सुविधा भी पूरी तरह से मुफ्त दी जाती है।
अष्टाधायी की प्रशंसा में प्रो. दीक्षित कहती है कि भारतीयों को यह अहसास ही नहीं रहा है कि यह एक क्रांतिकारी व विलक्षण ग्रंथ है। 550 ई पू. रचित आठ अध्यायों में फैले 32 पदों के तहत पिरोए गए तीन हजार 996 सूत्रों वाले इस ग्रंथ ने लोकप्रियता की जिन ऊँचाइयों को छुआ है वहाँ तक इसके पहले और बाद में रचित सेकडों ग्रंथों में से एक भी नहीं पहुँच सका है।
प्रो. दीक्षित ने बताया कि अष्टाधायी ग्रंथ सूत्रों की संपूर्णत: संक्षिप्तता, क्रमबद्धता व व्यवस्थित संयोजन जैसी खूबियों के लिए दुनिया भर में प्रशंसा पा चुका है। उन्होने कहा कि पाणिनी ने अष्टाधायी ग्रंथ की रचना के दौरान उन सभी तकनीको का समावेश किया जो ग्रंथ को स्मृतिगम्य यानी याद करने में आसान बना सकती थी। आचार्य पाणिनी ने शब्द बनाए नहीं है बल्कि उनके बनने की विधि व प्रक्रिया को सिखाया है।
देश-विदेश में संस्कृत को कठिन भाषा के रुप में प्रचारित करने वालों के सिलसिले में प्रो.दीक्षित का कहना है कि पिछले एक हजार साल से संस्कृत अष्टाधायी पर लिखे गए महाभाष्टा व टीकाओ के सहारे पढाई जाती रही है और इससे लोग 10 से 12 साल में भी संस्कृत भाषा में पारंगत नहीं हो पा रहे है जबकि इसकी सबसे बड़ी वजह इन ग्रंथों में अष्टाधायी के सूत्रों की क्रमबद्धता का बरकरार नहीं रह पाना रही। प्रो. दीक्षित दावा करती है कि पाणिनी रचित अष्टाधायी ग्रंथ की मूल भावना व तकनीक के सहारे वे पांच साल के बच्चे को भी कुछ ही महीने में संस्कृत भाषा में पारंगत बना सकती है।
उन्होंने बताया कि इस शैक्षणिक फिल्म के जरिए संस्कृत व्याकरण की ऐतिहासिकता पर भी रोशनी डालने का प्रयास किया गया है। फिल्म में बताया गया है कि पाणिनी को संस्कृत व्याकरण के क्रमबद्ध विकास का प्रणेता माना जाता है। हालांकि उनके पहले भी करीब 10 व्याकरणाचार्यो के होने का उल्लेख मिलता है लेकिन अष्टाधायी की रचना के बाद के संस्कृत व्याकरण के महान ग्रंथ मूलत: इस पर विभिन्न विद्वानों द्वारा लिखी गई टीकाएँ व भाष्य ही है।
पाणिनी के व्याकरण ग्रंथ पर आधारित फिल्म के निर्देशक अमितोष दुबे ने भाषा को बताया कि फिल्म के पहली 71 कड़ियाँ केवल पाणिनी कृत अष्टाधायी की अध्ययन पद्धति व शेष कड़ियाँ शब्द के निर्माण की प्रक्रिया पर केन्द्रित है।
उन्होंने कहा कि अगर यह फिल्म दर्शकों को कुछ हद तक ही सही यह अहसास करा पाई कि भारत के गौरवशाली अतीत को पूरी तरह से संस्कृत भाषा के ज्ञान व संस्कृत भाषा को अष्टाधायी के ज्ञान के बिना नहीं जाना जा सकता है तो हम अपने प्रयास को सार्थक मान सकेंगे।
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